Course Type | Course Code | No. Of Credits |
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Foundation Core | NA | 6 |
Semester
Course Details:
Summary:
कला और साहित्य हमेशा से मानव सभ्यता के अंग रहे हैं। वैश्विक जगत के आधुनिक और तमाम प्राचीन राष्ट्रों का सीमांकन भी संभवतः इसी आधार पर हुआ। इस सीमांकन के बावजूद कला और साहित्य का पारगमन विभिन्न सभ्यताओं के मध्य होता रहा और आज भी किसी न किसी रूप में बदस्तूर जारी है। पारगमन की इस परंपरा को दृष्टिगत रखते हुए कला और साहित्य के तात्विक पक्ष के साथ ही इसके सामाजिक प्रभावों का अध्ययन इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत किया जाएगा। यह पाठ्यक्रम कला और साहित्य को भारतीय व वैश्विक विचारधाराओं के नजरिये से देखने-समझने का प्रयास करेगा। इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत विद्यार्थी साहित्य और कला के मध्य अन्तर्सम्बन्धों को लेकर होने वाली तमाम स्थापनाओं और बहसों को विश्लेषित करने की समझ विकसित कर सकेंगे।
Objectives:
यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को विषय की आधारभूत समझ के साथ एक तुलनात्मक मंच भी उपलब्ध कराएगा। भारतीय और वैश्विक नजरियों के तुलनात्मक अध्ययन से विद्यार्थियों को एकांगी अध्ययन की बजाय एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने का मौका मिलेगा। साथ ही पाठ्यक्रम का फलक बहुआयामी होने के कारण विद्यार्थी विषय को इसकी समग्रता में देखने व विश्लेषित करने की समझ भी विकसित कर सकेंगे।
Expected learning outcomes:
Overall structure (course organisation, rationale of organisation; outline of each module):
माड्यूल-1 : कला, साहित्य और समाज
कला और साहित्य के व्यापक क्षेत्र को देखते हुए इन्हे अवधारणात्मक स्तर पर विश्लेषित करना जरूरी है। इस विश्लेषण में भारतीय चिंतन के साथ पाश्चात्य चिंतन प्रक्रिया को समझना भी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है। कला का साहित्य के साथ विशेष संबंध रहा है, वहीं सामाजिक तौर पर इसका दखल स्तरीकरण से लेकर उसके विभिन्न प्रारूपों में देखने को मिलता है। इसकी एक व्यापक रूपरेखा विद्यार्थियों के समक्ष इस मॉड्यूल के तहत रखी जाएगी। साथ ही कला, साहित्य और समाज के अन्तर्सम्बन्धों को विभिन्न बहसों, विमर्शों और विचारधाराओं के जरिये समझने का प्रयास किया जाएगा।
मुख्य पाठ :
माड्यूल-2: भारतीय कला का सौंदर्यशास्त्र
यह मॉड्यूल मुख्यतः भारतीय कला पर केंद्रित होगा। भारतीय कला के विविध आयामों जैसे स्थापत्य, संगीत, चित्रकला, आदि ने सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर खुद को एक दीर्घकालिक प्रक्रिया के तहत स्थापित किया है। इसमें शिल्पगत विभिन्नताओं के साथ ही लोक जीवन में उसके हस्तांतरण के विकास की एक लंबी प्रक्रिया रही है। इस मॉड्यूल के अंतर्गत विद्यार्थी भारतीय कला के विकास और उसके सौंदर्यशास्त्र के महत्व को समझने का प्रयास करेंगे। साथ ही भारतीय कला पर विभिन्न विद्वानों के नजरिये से उसकी व्याख्याओं को समझने का प्रयास किया जाएगा ताकि विद्यार्थियों को विश्लेषण के लिए एक व्यापक क्षेत्र मिल सके।
मुख्य पाठ :
माड्यूल- 3: कला और हिंदी साहित्य
यह मॉड्यूल हिंदी साहित्य की विस्तृत परंपरा में कला के विविध पक्षों की उपस्थिति को व्याख्यायित व विश्लेषित करेगा। कला की यह उपस्थिति उसकी शास्त्रीयता से लेकर जनपक्षधरता तक हिंदी साहित्य में निरंतर प्रतिबिम्बित होती रही है। अपनी आरम्भिक यात्रा से लेकर वर्तमान युग तक हिंदी साहित्य ने कला के बदलते प्रतिमानों को विविध रूपों में स्थान दिया है। विचारधाराओं व विमर्शों ने भी कला और हिंदी साहित्य के संबंधों में कई परिवर्तनगामी प्रभाव डाले हैं। इस मॉड्यूल के तहत संबंधों की इस लंबी यात्रा की पड़ताल करते हुए विद्यार्थी इसे विश्लेषित करने की समझ विकसित कर सकेंगे। साथ ही, इस मॉड्यूल में कला के सामाजिक रचनात्मक पहलू, साहित्य के प्रति उसकी सापेक्षिक स्वायत्तता और उसकी दीर्घजीविता के तत्व व उपकरण जैसे मुद्दों से भी विद्यार्थी अवगत हो सकेंगे।
मुख्य पाठ :
माड्यूल-4: रूपंकर कलाएं और साहित्य
लोक कलाओं का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। परंपरागत तौर पर स्थानीय या क्षेत्रीय कुटुम्बों द्वारा निर्मित ये कलाएं अपने मूल में शुभाशुभ कर्मों के भाव की ओर इंगित करती हैं। चित्र, प्रतीक, चिह्न, नृत्य, संगीत, गायन, वादन से लेकर रोजमर्रा की कई चीजों में इन कलाओं का अनायास प्रवेश देखा जा सकता है। वहीं, अवसर विशेष से जुड़े अनुष्ठानों में भी इसके विविध रूप देखे जा सकते हैं। किसी भी बहुविध समाज में ये कलाएं वहाँ के साहित्य पर भी विशेष प्रभाव डालती हैं। एक प्रकार से कहें तो यह उनकी बुनावट तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह मॉड्यूल लोक कला और साहित्य के अन्तर्सम्बन्धों को पारंपरिक व आधुनिक दोनों नजरिये से व्याख्यायित करने की कोशिश करेगा। साथ ही, भारतीय नाट्य कला का अध्ययन भी इस मॉड्यूल के अंतर्गत किया जाएगा। इस पाठ्यक्रम द्वारा विद्यार्थी कला और साहित्य में लोक-पक्ष की भूमिका को समझने व विश्लेषित करने में सक्षम हो सकेंगे।
मुख्य पाठ :
संदर्भ पाठ/ पुस्तकें
Contents (week wise plan with readings):
Week | Plan/ Theme/ Topic | Objectives | Core Reading (with no. of pages) | Additional Suggested Readings | Assessment (weights, modes, scheduling) |
1 | कला और साहित्य का अंतर्सम्बन्ध | इसके व्यापक क्षेत्र को देखते हुए इन्हे अवधारणात्मक स्तर पर विश्लेषित करना। इस विश्लेषण में भारतीय चिंतन के साथ पाश्चात्य चिंतन प्रक्रिया को शामिल करना | 1. कला और साहित्य, माखन लाल चतुर्वेदी 2. साहित्य और कला, भगवत शरण उपाध्याय 3. काव्य चिंतन की पश्चिमी परम्परा, निर्मला जैन | ------ | ----- |
2 | कला और समाज का अंतर्सम्बन्ध | सामाजिक तौर पर इसके दखल को स्तरीकरण से लेकर उसके विभिन्न प्रारूपों में देखना। | कला और साहित्य चिंतन: कार्ल मार्क्स, सम्पादक- नामवर सिंह | -------- | ------- |
3 | कला और समाज का अंतस्सम्बन्ध
| कला साहित्य और समाज के अंतरसम्बंधों को विभिन्न बहसों, विमर्शों व विचारधाराओं के जरिये समझना | साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका, डा. मैनेजर पांडेय | ----------- | 20%- गृहकार्य |
4 | भारतीय कला का विकास | भारतीय कला के विविध आयामों की समझ विकसित करना। | कला, कल्पना और साहित्य, सत्येंद्र | ------------- |
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5 | भारतीय कला का विकास | शिल्पगत विभिन्नताओं के साथ लोक जीवन में उसके हस्तांतरण के विकास की प्रक्रिया को समझाना। | कला और संस्कृति, वासुदेव शरण अग्रवाल | ----------- |
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6 | भारतीय कला का सौंदर्यशास्त्रीय महत्व | विद्यार्थी भारतीय कला के विकास और उसके सौंदर्यशास्त्र के महत्व को समझना। साथ ही विभिन्न व्याख्याओं के जरिये व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना। | कला और साहित्य चिंतन: कार्ल मार्क्स, सम्पादक- नामवर सिंह | ------------- | 30% -कक्षा प्रस्तुति |
7 | कला और हिंदी साहित्य के सम्बंध की परंपरा | कला में शास्त्रीयता से लेकर जनपक्षधरता तक विविध पक्षों की उपस्थिति को व्याख्यायित व विश्लेषित करना। | 1. कला और साहित्य, माखन लाल चतुर्वेदी 2. साहित्य और कला, भगवत शरण उपाध्याय | ------------- | ----------- |
8 | कला और हिंदी साहित्य के सम्बंध की परंपरा | हिंदी साहित्य में कला द्वारा साहित्य के क्षेत्र में परिवर्तित होते प्रतिमानों, विचारधाराओं व विमर्शों के सम्बंध एवं प्रभाव को समझाना। | 1. कुछ विचार, प्रेमचंद 2. अन्य साहित्यिक निबंध | -------------- | 20%- कक्षा परीक्षा |
9 | कला में दीर्घजीविता के तत्व और उपकरण | दीर्घजीविता के तत्वों की समझ विकसित करना। साहित्य के साथ इसकी सापेक्षिक स्वायत्ता जानना। | कला और साहित्य चिंतन: कार्ल मार्क्स, सम्पादक- नामवर सिंह | ----------- | ------------- |
10 | कला में दीर्घजीविता के तत्व और उपकरण
| दीर्घजीविता के उपकरणों तथा उसके रचनात्मक पहलू को समझना। | कला और साहित्य चिंतन: कार्ल मार्क्स, सम्पादक- नामवर सिंह | ------------ |
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11 | लोक-कला और साहित्य | लोक कला और साहित्य के अन्तर्सम्बन्धों को पारंपरिक व आधुनिक दोनों नजरिये से व्याख्यायित करना। | लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति: परम्परा की प्रासंगिकता एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य, सम्पादक- डा.वीरेंद्र सिंह यादव | ----------- | ------------- |
12 | भारतीय नाट्य कला | भारतीय नाट्य कला को व्याख्यायित करते हुए इसमें लोक-पक्ष की भूमिका को समझना व विश्लेषित करना। | 1. नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक, हजारीप्रसाद द्विवेदी 2. हिंदी नाटक: उद्भव और विकास, दशरथ ओझा | ------------- | 30%- सत्रांत परीक्षा |
Pedagogy:
Signature of Course Coordinator(s)
Note: