programme

हिंदी नाटक एवं एकांकी

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Course TypeCourse CodeNo. Of Credits
Foundation CoreNA6
  • Does the course connect to, build on or overlap with any other courses offered in AUD? None
  • Specific requirements on the part of students who can be admitted to this course:
  • (Pre-requisites; prior knowledge level; any others – please specify) None
  • No. of students to be admitted (with justification if lower than usual cohort size is proposed): As per School Rule
  • Course scheduling (semester; semester-long/half-semester course; workshop mode; seminar mode; any other – please specify): Second Semester, Semester-long.
  • How does the course link with the vision of AUD?
  • स्नातक स्तर के दूसरे सत्र के लिए प्रस्तावित यह पाठ्यक्रम ‘हिंदी नाटक और एकांकी’ पर केन्द्रित है | प्रस्तावित पाठ्यक्रम में निर्धारित पाठ के ज़रिये विद्यार्थी ‘भारतेंदु युग’ (1857) से लेकर ‘प्रसादोत्तर (1950 के पश्चात्)’ तक हिंदी नाटक एवं एकांकी की विकास यात्रा का अध्ययन विभिन्न ऐतिहासिक, सामाजिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में करेंगे | विद्यार्थी नाटक एवं एकांकी के अध्ययन के माध्यम से देश और समाज से जुड़े विभिन्न मुद्दों के प्रति अपनी एक समझ विकसित कर सकेंगे और इसी तारतम्य में सुचिंतित दिशा खोजने का प्रयास भी करेंगे जो कि अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के विज़न के अनुरूप है |
  • How does the course link with the specific programme(s) where it is being offered?
  • स्नातक (हिंदी) के प्रथम सत्र में विद्यार्थी ‘आधुनिक हिंदी कविता (छायावाद तक)’ तथा ‘हिंदी कहानी (प्रेमचंद पूर्व से लेकर स्वातंत्र्योत्तर तक )’ पाठ्यक्रमों का पठन-पाठन कर चुके होंगे जिसके अंतर्गत भारतेंदु युग से लेकर स्वतंत्रता पश्चात् तक की युगीन परिस्थितियों का खाका उनके ज़ेहन में पहले ही तैयार हो चुका होगा | इस पूर्व निर्मित पृष्ठभूमि के कारण विद्यार्थी तत्कालीन युगीन परिस्थितियों और साहित्यिक प्रवृत्तियों के आईने में, पाठ्यक्रम में निर्धारित नाटक एवं एकांकियों का न केवल भली-भांति अध्ययन कर पायेंगे बल्कि उसका समालोचनात्मक विश्लेषण करने में भी सक्षम हो जायेंगे |

Course Details:

Summary:

इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य ‘नाटक और एकांकी’ में अंतर स्पष्ट करते हुए उसके उद्भव और विकास को कालक्रमानुसार रेखांकित करना है ताकि विद्यार्थी भारतेंदु युग से लेकर स्वतंत्रता पश्चात तक के ‘हिंदी नाटक और एकांकी’ के सफ़र के प्रति अपना एक स्पष्ट नजरिया विकसित कर सकें | इसके अतिरिक्त साहित्य में हिंदी नाटक और एकांकी के सन्दर्भ में समय के साथ-साथ जो परिवर्तन हुए, विभिन्न नाटककारों के नाटकों की रंगमंचीयता को लेकर जो बहसें हुईं, हिंदी एकांकी के सूत्रपात और प्रथम एकांकी को लेकर जो विवाद और मतभेद हैं उनसे भी विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम में निर्धारित पाठों की सहायता से परिचित कराया जाएगा ताकि वह हिंदी नाटक एवं एकांकी के इतिहास का बारीकी के साथ विश्लेषण कर सकें | स्वतंत्रता के पश्चात नाटक तथा एकांकियों की विषय-वस्तु एवं शिल्प के चयन में जिस प्रकार बदलाव नज़र आने लगा, रंगमंचीयता और अभिनेयता पर किस प्रकार अब पहले से ज्यादा बल दिया जाने लगा, उपन्यास और कहानी की तरह अब नाटक और एकांकी भी कैसे यथार्थ से अधिक जुड़ गए, इन सभी पहलुओं पर इस पाठ्यक्रम के तहत प्रकाश डाला जाएगा |

Objectives:

इस पाठ्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी आधुनिक हिंदी नाटक के स्वरुप और विकास के साथ-साथ उसकी संरचना और प्रकृति को समझने में भी सक्षम होंगे | निर्धारित पाठों के माध्यम से विद्यार्थियों के समक्ष नाटक और एकांकी की ऐतिहासिक परम्परा को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जाएगा ताकि वह सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों का विश्लेषण कर रचना और रचनाकार की प्रासंगिकता पर विचार कर सकें | यह पाठ्यक्रम केवल पठन एवं पाठन तक सीमित नहीं है क्योंकि इस पाठ्यक्रम का आधुनिक रूप रोजगारोन्मुखी है | सीबीसीएस ढांचे के अनुरूप यह पाठ्यक्रम 6 {अध्यापन (4) + मूल्यांकन(2)} क्रेडिट का है इसलिए यह पूरा प्रयास रहेगा कि विद्यार्थियों को भविष्य में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु भी तैयार किया जाए ताकि वह नाटक एवं एकांकी के व्यावहारिक रूप से भलीभांति रूबरू हो सकें | इसके लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा नाटक सम्बन्धी कार्यशालाओं का आयोजन करवाने का प्रयास किया जाएगा ताकि विद्यार्थी निर्धारित पाठ में से स्वयं किसी एक एकांकी या नाटक के किसी एक दृश्य को मंचित करने के योग्य बन सकें |

Expected learning outcomes:

  • प्रस्तावित पाठ्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी साहित्य के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों रुपों से परिचित होंगे |
  • प्रस्तावित पाठ्यक्रम द्वारा विद्यार्थी भाषा और समाज के जटिल संबंधों की पहचान करने में सक्षम हो सकेंगे जिससे वह समाज,राष्ट्र और विश्व के साथ बदलते समय में व्यापक सरोकारों से अपना सम्बन्ध स्थापित कर पायें |
  • इस पाठ्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी के भाषा कौशल, लेखन और सम्प्रेषण क्षमता का विकास होगा |
  • निर्धारित पाठ के माध्यम से रचनाकारों की युगीन परिस्थितियों और साहित्यिक प्रवृत्तियों के अध्ययन से विद्यार्थी में राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता के भाव का विकास होगा |

Overall structure (course organisation, rationale of organisation; outline of each module):

मॉड्यूल – 1.

प्रस्तुत पाठ्यक्रम का मॉड्यूल-1 'नाटक तथा एकांकी की अवधारणा', 'हिंदी नाटक और एकांकी के उदय एवं विकास' पर केन्द्रित रहेगा जिसे निर्धारित पाठों के परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थियों के समक्ष रखा जायेगा | इस माड्यूल के अंतर्गत हिंदी नाटक एवं एकांकी के बीच क्या अंतर है ? दोनों एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ? इसको लेकर विद्वानों के बीच जो मतभेद हैं इन पर भी विद्यार्थियों का ध्यान आकृष्ट किया जाएगा | कुछ विद्वान या आलोचक एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं, यह धारणा कितनी सही है या गलत ? दोनों विधाओं के शिल्प में क्या अंतर है ? इन सभी पहलुओं पर विद्यार्थियों का एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए इस माड्यूल में नाटक ‘भारत दुर्दशा’ तथा एकांकी – ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ का अध्ययन एक साथ रखा गया है ताकि विद्यार्थी विषय-वस्तु, शिल्प, रंगमंचीयता आदि दृष्टि से दोनों का तुलनात्मक अध्ययन कर उसमें सहसंबंध भी स्थापित कर सकें | ‘भारत –दुर्दशा’(1875 ई. ) जहाँ एक ओर हिंदी नाटक के प्रणेता भारतेंदु का नाटक है वहीं ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ (1947 ई.) के रचयिता हैं रामकुमार वर्मा, जिन्हें हिंदी एकांकी के सूत्रपात का श्रेय दिया जाता है | हालाँकि इस सम्बन्ध में अनेक विवाद हैं कि हिंदी की पहली एकांकी किसे कहा जाए लेकिन डॉ. नगेन्द्र के अनुसार – हिंदी एकांकी के जनक डॉ. राम कुमार वर्मा ही हैं | उक्त दोनों रचनाओं के लेखन काल में काफी अंतराल है | इस अंतराल के दौरान हिंदी नाटक की विकासयात्रा कैसी रही, नाटक की इस विकासशील यात्रा के मध्य में एकांकी ने किस प्रकार अपना स्थान बनाया, इन सभी पहलुओं का अध्ययन इस माड्यूल में अपेक्षित रहेगा |

निर्धारित पाठ :-

  • नाटक एवं एकांकी की संरचना एवं प्रकृति
  • नाटक एवं एकांकी उद्भव एवं विकास
  • नाटक – भारत-दुर्दशा (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
  • एकांकी – औरंगजेब की आखिरी रात (रामकुमार वर्मा)

मॉड्यूल – 2

इस माड्यूल के अंतर्गत जयशंकर प्रसाद द्वारा कृत नाटक – ‘स्कंदगुप्त’ को रखा गया है | भारतेंदु ने हिंदी नाटक को जो साहित्यिक भूमिका प्रदान की उसे कालान्तर में प्रसाद ने पल्लवित किया | हालांकि जयशंकर प्रसाद का आगमन नाटक के क्षेत्र में काफी बाद में हुआ लेकिन अपने ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से प्रसाद ने भारत के गौरवशाली अतीत का चित्रण कर राष्ट्रीयता भावना उत्पन्न करने का सफल प्रयास किया | अपने नाटकों में उन्होंने अतीत के पटल पर वर्तमान का चित्रण किया तथा इतिहास एवं कल्पना का संतुलित समन्वय करने में भी वह पूर्णत: सफल रहे | नाट्य शिल्प की दृष्टि से प्रसाद के नाटक बेजोड़ हैं और ‘स्कंदगुप्त’ इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है लेकिन रंगमंचीयता की दृष्टि से इनके नाटकों को लेकर आलोचकों में एक बहस है कि ‘प्रसाद के नाटक अभिनय अर्थात रंगमंचीयता की दृष्टि से सफल नहीं हैं |’ प्रस्तुत माड्यूल में ‘स्कंदगुप्त’ का अध्ययन करते हुए विद्यार्थी प्रसाद की नाट्य कला, उनके नाटकों की रंगमंचीयता को लेकर जो मतभेद हैं उनसे भली-भांति परिचित होंगे | इसी परिप्रेक्ष्य में जगदीशचन्द्र माथुर की एकांकी ‘भोर का तारा’ भी इस माड्यूल का हिस्सा है | जगदीशचन्द्र माथुर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी रंगमंच को नई दिशा देने का प्रयास किया और इनकी एकांकी अभिनेयता की दृष्टि से काफी सफल मानी जाती हैं | ‘भोर का तारा’ में जगदीशचंद्र माथुर ऐतिहासिक काल्पनिक कथ्य के ज़रिये राष्ट्रीय भावना को जागृत होते हुए दिखाते हैं | राष्ट्र-प्रेम के आगे व्यक्तिगत-प्रेम के कोई मायने नहीं है और खासकर एक कवि के लिए, इसी विषयवस्तु को रचनाकार ने सफलतापूर्वक प्रस्तुत एकांकी में प्रदर्शित किया है | इस माड्यूल में विद्यार्थी दो सफल रचनाकारो की लगभग समान विषयवस्तु वाली रचनाओं का तुलनात्मक मूल्यांकन कर पायेंगे ताकि वह नाटक और एकांकी की रंगमंचीयता में आने वाली परेशानियों तथा उसकी बारीकियों से अवगत हो सकें और उनके बीच के भेद को भी पहचान सकें |

निर्धारित पाठ :-

  • नाटक – स्कन्दगुप्त (जयशंकर प्रसाद)
  • एकांकी – भोर का तारा (जगदीशचन्द्र माथुर)

माड्यूल – 3

स्वतंत्रता के पश्चात नाटक जीवन के यथार्थ के साथ अधिक जुड़ गए यद्यपि इस काल में भी नाटक की विषयवस्तु इतिहास –पुराण पर आधारित रही लेकिन अब नाटककार ऐतिहासिक या पौराणिक घटनाओं की सहायता से समसामयिक जीवन की समस्याओं और प्रश्नों को अधिक रूपायित करने लगे | प्रसादोत्तर हिंदी नाटक के सशक्त नाटककारों में से एक मोहन राकेश हैं जिनके द्वारा कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ का अध्ययन इस माड्यूल के अंतर्गत कराया जाएगा | ‘आषाढ़ का एक दिन’ का कथानक भी ऐतिहासिक ही है क्योंकि नाटक की कथा महाकवि ‘कालिदास’ के इर्द –गिर्द घूमती है लेकिन प्रस्तुत नाटक के माध्यम से नाटककार ने जिस सन्देश को प्रतिपादित किया है उसका सम्बन्ध वर्तमान से है | राज्याश्रय और रचनाकर्म यह दोनों परस्पर विवाद का विषय रहे हैं | प्रस्तुत नाटक में मोहन राकेश ने कालिदास को इसी अंतर्द्वंद के बीच दिखाया है | इसी तारतम्य में गोविन्द वल्लभ पन्त की एकांकी ‘विषकन्या’ के माध्यम से एक और ऐतिहासिक कथानक विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जिससे विद्यार्थियों को इस बात का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो कि रचनाकार शिल्प के माध्यम से कैसे इतिहास और वर्तमान के बीच एक संवाद स्थापित करता है |

निर्धारित पाठ :-

  • नाटक – आषाढ़ का एक दिन (मोहन राकेश)
  • एकांकी – विष कन्या (गोविन्द वल्लभ पन्त)

माड्यूल – 4

स्वतंत्रता के पश्चात् हिंदी नाटकों में जिस तरह के नवीन प्रयोग हुए उसने नाटकों को पुरानी लीक से हटाकर नवीन मार्ग ग्रहण कराया | गद्य की अन्य विधाओं की तरह ‘स्त्री-प्रश्न, स्त्री-मनोविज्ञान, स्त्री-अंतर्द्वंद’ हिंदी नाटक एवं एकांकी के ज्वलंत विषय बनने लगे | इस माड्यूल के तहत भीष्म साहनी के नाटक ‘माधवी’ का अध्ययन कराया जाएगा | प्रस्तुत नाटक में नाटककार ने महाभारत की पौराणिक कथा को आधार बनाकर नारी जीवन की त्रासदी का यथार्थवादी चित्रण किया है | ‘माधवी’ तथाकथित पुरुषवादी मानसिकता की खोखली मान्यताओ पर करारा तमाचा है | इसी तारतम्य में विष्णु प्रभाकर की एकांकी ‘और वह न जा सकी’ को भी रखा गया है जिसमें आधुनिक भावबोध से उत्पन्न तनाव एवं जीवन संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है | यह एकांकी स्त्री मनोविज्ञान पर आधारित है जिसमें ‘शारदा’ की भावनाओं और कर्त्तव्य के बीच चलने वाले अंतर्द्वंद को रेखांकित किया गया है | विद्यार्थी इन पाठों के ज़रिये नाटक और एकांकी के कथानक में आने वाले परिवर्तन से परिचित होंगे साथ ही पाठों में उठाये गए स्त्री-प्रश्नों का विश्लेषण ऐतिहासिक एवं आधुनिक संदर्भों में कर पायेंगे |

निर्धारित पाठ :-

  • नाटक – माधवी (भीष्म साहनी)
  • एकांकी – और वह न जा सकी (विष्णु प्रभाकर)

संदर्भ पाठ/पुस्तकें -

  • नाट्य शास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक – हजारी प्रसाद द्विवेदी, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली,2007.
  • हिंदी नाटक : उद्भव और विकास – दशरथ ओझा, राजपाल एंड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली, 2008.
  • नाटककार भारतेंदु की रंग-परिकल्पना, सं. सत्येन्द्र तनेजा, राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2002.
  • हिंदी एकांकी- सिद्धनाथ कुमार, नेहा पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली, 2009.
  • एकांकी उद्भव और विकास - मंजरी त्रिपाठी, ज्ञान-विज्ञान प्रकाशन दिल्ली |
  • जयशंकर प्रसाद : रंगदृष्टि (भाग-१ ), महेश आनंद,राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली |
  • नाटककार जयशंकर प्रसाद, सत्येन्द्र कुमार तनेजा,राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली 1997,
  • भारत-दुर्दशा : भारतेंदु हरिश्चन्द्र, संपा. लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय, विश्वविद्यालय प्रकाशन,गोरखपुर, 1953.
  • सप्तकिरण – डॉ. रामकुमार वर्मा, नेशनल इंफ़रमेशन एंड पब्लिकेशन लिमिटेड, बम्बई, प्रथम संस्करण -1947.
  • स्कन्दगुप्त – जयशंकर प्रसाद, भारती भंडार, बनारस, द्वितीय संस्करण |
  • नए एकांकी – संपा. अज्ञेय, राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1961.
  • आषाढ़ का एक दिन – मोहन राकेश, राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली |
  • विष कन्या – गोविन्द वल्लभ पन्त, आत्माराम एंड संस, दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1958.
  • माधवी – भीष्म साहनी, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1984.
  • और वह न जा सकी – विष्णु प्रभाकर.

Contents (week wise plan with readings):

Week

Plan/ Theme/ Topic

Objectives

Core Reading (with no. of pages)

Additional Suggested Readings

Assessment (weights, modes, scheduling)

1

नाटककास्वरुप / हिंदीनाटककाउद्भवएवंविकास

.नाट्यकीसंरचनाप्रकृतिका

परिचय

 

. हिंदीनाटककेइतिहासकीजानकारी

 

नाट्यशास्त्रकीभारतीयपरम्पराऔरदशरूपकहजारीप्रसादद्विवेदी,

 

हिंदीनाटक : उद्भवऔरविकासदशरथओझा

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2

भारत - दुर्दशा

.नाटककाअध्ययन,

 

.भारतेंदुकीरंगदृष्टि

 

.रंगमंचकीदृष्टिसेभारतदुर्दशा

भारत-दुर्दशा- भारतेंदुहरिश्चंद्र, सम्पादकलक्ष्मीसागरवार्ष्णेय,

 

नाटककारभारतेंदुकीरंग-परिकल्पना, सं. सत्येन्द्रतनेजा

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3

हिंदीएकांकीकास्वरुपऔरक्रमिकविकास

.एकांकीऔरनाटकमेंअंतर

 

. हिंदीएकांकीकेइतिहासकीजानकारी

हिंदीएकांकी- सिद्धनाथकुमार,

 

एकांकीउद्भवऔरविकास - मंजरीत्रिपाठी

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20 percent (after 3 week)- Home Assignment- 1

4

औरंगजेबकीआखिरीरात

एकांकीकाअध्ययन

सप्तकिरणडॉ. रामकुमारवर्मा

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5

 स्कन्दगुप्त

नाटककाअध्ययन

 

 

स्कन्दगुप्तजयशंकरप्रसाद

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6

प्रसादकेनाटकोंकीरंगमंचीयता

स्कन्दगुप्तएवंअन्यनाटकोंकेसम्बन्धमें

 

प्रसादकीनाट्यकला

जयशंकरप्रसाद : रंगदृष्टि, महेशआनंद

नाटककारजयशंकरप्रसाद, सत्येन्द्रकुमारतनेजा

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30 percent (after week 3) –Mid Sem Exam -2

7

भोरकातारा

एकांकीकाअध्ययन

नएएकांकी, संपा- अज्ञेय

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8

आषाढ़काएकदिन

नाटककाअध्ययन

आषाढ़काएकदिनमोहनराकेश

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9

विषकन्या

एकांकीकाअध्ययन

विषकन्यागोविन्दवल्लभपन्त

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20 percent (after 3 week)- Home Assignment -3

10

माधवी

नाटककाअध्ययन

माधवीभीष्मसाहनी

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11

औरवहजासकी

एकांकीकाअध्ययन

औरवहजासकीविष्णुप्रभाकर

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12

Revision

Revision

 

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30 per cent (after 3 week)- End Sem  Assesment-4

Pedagogy:

  • Instructional strategies: क्लासरूम अध्यापन, विशिष्ट व्याख्यान एवं कार्यशालाओं का आयोजन तथा फिल्म/डाक्यूमेंटरी माध्यम का प्रयोग
  • Special needs (facilities, requirements in terms of software, studio, lab, clinic, library, classroom/others instructional space; any other – please specify): None
  • Expertise in AUD faculty or outside AUD faculty
  • Linkages with external agencies (e.g., with field-based organizations, hospital; any others) None

Signature of Course Coordinator(s)

Note:

  • Modifications on the basis of deliberations in the Board of Studies (or Research Studies Committee in the case of research programmes) and the relevant Standing Committee (SCAP/SCPVCE/SCR) shall be incorporated and the revised proposal should be submitted to the Academic Council with due recommendations.
  • Core courses which are meant to be part of more than one programme, and are to be shared across Schools, may need to be taken through the Boards of Studies of the respective Schools. The electives shared between more than one programme should have been approved in the Board of Studies of and taken through the SCAP/SCPVCE/SCR of the primary School.
  • In certain special cases, where a course does not belong to any particular School, the proposal may be submitted through SCAP/SCPVCE/SCR to the Academic Council.